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भारत में कृषि इंजीनियरी शिक्षा - विकल्प और संभावनाएं


                              भारत में कृषि इंजीनियरी शिक्षा - विकल्प और संभावनाएं

                                                                                                        डॉ. अनिल कुमार मिश्र और रणबीर सिंह

इंजीनियरी के अन्य विषयों की तुलना में कृषि इंजीनियरी बेजोड़ और अत्यंत महत्वपूर्ण है. अनुभव से पता चलता है कि किसी राष्ट्र के आर्थिक विकास का स्तर उसके मानव संसाधन स्तर विशेषकर विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है. भारत के महान कृषि इंजीनियर डॉ. ए.एम. मिशेल ने कहा है कि ‘‘विश्वभर के राष्ट्रों को कृषि इंजीनियरों के महान योगदान की आवश्यकता है ताकि लोगों को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराया जा सके. कृषि इंजीनियरों के योगदान के अभाव में यह परिकल्पना पूरी नहीं की जा सकती. कृषि इंजीनियरी के अंतर्गत विज्ञान के कई विषय और प्रौद्योगिकी के कई सिद्धांत शामिल हैंजो कृषि को स्थिरलाभकारी और प्रतिस्पर्धात्मक उद्यम बनाते हैं. इनमें खेती के यंत्रीकरण संबंधी इंजीनियरी उपायमूल्य संवर्धन और उत्पादन तथा पैदावार परवर्ती कार्यों में ऊर्जा प्रबंधन शामिल हैं. वर्तमान परिदृश्य में आधुनिक और उपयुक्त उपकरणों एवं औजारों की मदद से बहुत कम समय में और कम लागत के साथ सभी कृषि कार्य पूरे किए जा सकते हैं. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेती के सही और उपयुक्त उपकरणों और औजारों की जरूरत बढऩे के साथ ही अच्छे कृषि इंजीनियरों की मांग बढ़़ती जा रही है.कृषि इंजीनियरी और यंत्रीकरण प्रतिशतकृषि इंजीनियरी का संबंध इंजीनियरी की उस शाखा के साथ हैजिसके अंतर्गत खेती में काम आने वाली मशीनों के डिजाइन तैयार करनेखेतों की अवस्थिति और संरचना की योजना बनानेखेतों में जल निकासीमृदा प्रबंधन और कटाव नियंत्रणजलापूर्ति और सिंचाईग्रामीण विद्युतीकरण और कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण जैसे कार्य शामिल हैं. कृषि इंजीनियर नई पद्धतियोंउपकरणों और कृषि उत्पाद प्रणालियों एवं पर्यावरण के लिए नई तकनीकों का डिजाइन और विकास करते हैं. इस व्यवसाय ने समुचित कृषि मशीनरीसिंचाई और फसल-परवर्ती उपकरणों और ऊर्जा अनुप्रयोगों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान किया है.कृषि यंत्रीकरण से खेती के कार्यों में समयबद्धता और निवेश के यथार्थ मापन और स्थानापन्न में शुद्धता आती हैजिससे उपलब्ध निवेश की हानि कम होती हैमहंगी कृषि सामग्री (बीजरासायनिक उरवर्कसिंचाईजल आदि) की प्रभावोत्पादकता बढ़ती हैउपज की प्रति हेक्टेयर उत्पादन लागत में कमी आती है और प्रचालन की लागत में प्रतिस्पर्धात्मकता से मुनाफा बढ़ता है. इस प्रकार कृषि यंत्रीकरण उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है. पहले यह समझा जाता था कि यंत्रीकरण से बेरोजग़ारी पैदा होती है. यह धारणा अब समाप्त हो गई है और यह देखा गया है कि कृषि यंत्रीकरण से उत्पादन के साथ-साथ उत्पादकता भी बढ़ती है और आय एवं रोजग़ार के अवसर भी पैदा होते हैं. भारत के विभिन्न भागों में कराए गए कई अध्ययनों से पता चलता है कि यंत्रीकरण से उत्पादनउत्पादकता बढ़ानेआय और रोजग़ार के अवसर पैदा करने में मदद मिली है. खेती के लिए बिजली की औसत उपलब्धता वर्तमान 1.15 किलोवाट/प्रति हेक्टेयर से बढ़ा कर कम से कम 2 किलोवाट/प्रति हेक्टेयर करने की आवश्यकता है ताकि खेत संबंधी कार्यों में समयबद्धता और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके. कृषि प्रचालनों में ये सभी कार्य तभी संभव हैंजब खेती के लिए यंत्रीकरण के समुचित ढांचे का सृजन किया जाए.भारत में कृषि इंजीनियरी शिक्षा प्रणालीभारत में कृषि इंजीनियरी शिक्षा का पहला पाठ्यक्रम 1942 में इलाहाबाद कृषि संस्थाननैनीइलाहाबादउत्तर प्रदेश में बैचलर ऑफ साइंस डिग्री के रूप में शुरू हुआ था. देश में कृषि इंजीनियरी शिक्षा का दूसरा पाठ्यक्रम 1952 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी)खडग़पुरपश्चिम बंगाल में बैचलर आफ टेक्नोलोजी (बी.टेक) के रूप में प्रारंभ हुआ. आईआईटी ने 1957 और 1962 में क्रमश: मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी (एम.टेक) और पीएच.डी डिग्रियां शुरू कीं.अमरीका में लैंड ग्रांट यूनिवर्सिटीज़ की तर्ज पर भारत में 1960 के दशक में राज्य कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना से कृषि शिक्षा के परिदृश्य में महत्वपूर्ण बदलाव आया. इससे शिक्षण अनुसंधान और विस्तार संकायों के अभिन्न अंग बन गए. नए पैटर्न के अंतर्गत प्रथम कृषि इंजीनियरी पाठ्यक्रम 1962 में उत्तर प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (जिसे अब जीबी पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कहा जाता है)पंत नगर में प्रारंभ हुआ. वर्तमान में ऐसे 24 संस्थान हैंजो कृषि इंजीनियरी में स्नातक पाठ्यक्रम संचालित करते हैं. इनमें से 16 विश्वविद्यालय मास्टर डिग्री और 8 विश्वविद्यालय पीएच.डी डिग्री पाठ्यक्रम संचालित करते हैं (यादव और अन्य, 1997). आईसीएआर (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद) राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिल कर काम करती है और उसने उच्चतर कृषि इंजीनियरी शिक्षा के विभिन्न पहलुओं में समन्वयसहायता और मार्गदर्शन के जरिए प्रथम श्रेणी के मानव संसाधन तैयार करने में महत्वपूर्ण योगदान किया है. यह संगठन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में विकास और सुविधाएं बढ़ानेशिक्षकों को प्रशिक्षण और विद्यार्थियों को स्कॉलरशिप/फेलोशिप के लिए धन प्रदान करता हैताकि गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके.कृषि इंजीनियरों के लिए सरकारी और निजी क्षेत्र में रोजग़ार के अवसरइंजीनियरी के अंतर्गत कृषि इंजीनियरी अत्यंत व्यापक क्षेत्र है. जो विद्यार्थी इस महत्वपूर्ण विषय का चयन करते हैंवे कुर्सी-मेज पर बैठ कर पर्दे के पीछे समस्याओं का मात्र समाधान करने वाले नहीं होते हैंबल्कि वे ऐसे लोग हैंजो बड़े ही उत्कृष्ट तरीके से समस्याओं का समाधान करते हैं और कार्यान्वयन की रूपरेखा बनाते हैं. वे कृषि से संबंधित सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए टीम बना कर काम करते हैं. कृषि इंजीनियर खेती के उपकरणोंजल गुणवत्ता और जल प्रबंधनजैविक उत्पादोंमवेशी केंद्रोंखाद्य प्रसंस्करण और कई अन्य कृषि क्षेत्रों से संबंधित समस्याओं का समाधान करते हैं. इतना ही नहींइस क्षेत्र के इंजीनियर कृषि से संबंधित पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिए भी कार्य करते हैंया फिर वे जैव प्रक्रिया प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञता हासिल करते हैं. प्रक्रियाएं और उपकरण सही ढंग से काम कर रही हैं या नहींइसकी जानकारी प्राप्त करने के लिए उन्हें अक्सर कार्यस्थलों का दौरा करना होता है. ये व्यवसायी इंडोर और आउटडोरदोनों स्थानों पर काम करते हैं. उनका काम ऋतु या बदलते मौसम पर निर्भर हो सकता हैअत: कभी कभी कृषि इंजीनियरों को सही स्थितियों का लाभ उठाने के लिए कई कई घंटे तक काम करना पड़ सकता है. वर्तमान में कृषि इंजीनियरों की मांग सर्वाधिक है. रोजग़ार के अवसर प्रचुर एवं विविध हैं. स्नातकों को शैक्षणिक संस्थाओं और अनुसंधान एवं विकास गतिविधियोंकृषि उत्पादनउपकरणों की बिक्री और सेवाओंवित्तीय प्रबंधन और परामर्शप्रमुख कृषि कंपनियोंसरकारी सेवाओंऔर कंसल्टेंसी एजेंसियों में रोजग़ार के व्यापक अवसर उपलब्ध होते हैं. कुछ कृषि इंजीनियर स्व-रोजग़ार का विकल्प भी अपनाते हैं. कृषि में स्नातक उपाधि प्राप्त करने से विश्वभर में बड़े निगमों और छोटे व्यापारिक संस्थानों में रोजग़ार के अवसर खुलते हैं. इनमें जल गुणवत्ताखाद्य प्रसंस्करणपर्यावरणीय प्रणालियोंस्ट्रक्चरल डिजाइनभूमि कटाव नियंत्रणपदार्थ प्रचालनकृषि विद्युत और उपकरण डिजाइन तथा ऐसे ही अन्य व्यवसाय शामिल हैं.नीचे कुछ ऐसे क्षेत्रों का उल्लेख किया गया हैजिनमें कृषि इंजीनियरी स्नातकों/स्नातकोत्तरों के लिए रोजग़ार के अवसर उपलब्ध होते हैं:-*खाद्य उत्पादन प्रणालियों का डिजाइन एवं प्रबंधन*राष्ट्रीय संसाधन प्रबंधन प्रणालियों का डिजाइन तैयार करना.*बायो-प्रोसेसिंग प्रणालियों का विकास और प्रबंधन.*केंद्र और राज्य सरकार के अंतर्गत विकासअनुसंधान और शिक्षण विभाग/संस्थान/ विश्वविद्यालय.*वाणिज्यिक बैंक और बीमा क्षेत्र.*क्षेत्र विकास/जलसंभरण विकास एजेंसियांजिनमें स्वयंसेवी संगठन शामिल हैंजो सतह और भूमिगत जल की गुणवत्ता की रक्षा करते हैं.*कृषि मशीनरीसडक़ से इतर चलने वाले वाहनों और कृषि उपकरणों की डिजाइनिंग जैसे कार्य करने वाले उद्योग.*सिंचाई प्रणाली के विनिर्माता और आपूर्तिकर्ता.*कृषि और मवेशी उत्पाद प्रसंस्करण उद्योगमवेशी उत्पादन सुविधाओं और पर्यावरणीय नियंत्रण प्रणालियों की डिजाइनिंग करने वाले उद्योग.*निर्यात विपणन और परामर्श सेवाओं आदि सहित कृषि निवेशों के उत्पादनफील्ड मूल्यांकन और विपणन में लगी बहु-राष्ट्रीय कंपनियां.कृषि इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश के लिए अनिवार्य योग्यताएं:कृषि इंजीनियरी बी.ई./बी.टेक/एम.ई./एम.टेक पाठ्यक्रमों में प्रवेश लेने के लिए उम्मीदवारों को प्रवेश परीक्षाओं में अर्हता प्राप्त करनी होती हैजिनका आयोजन सम्बद्ध संस्थान/विश्वविद्यालय द्वारा किया जाता है. प्रवेश परीक्षा में अर्हता प्राप्त करने वाले सभी उम्मीदवारों को प्रवेश संबंधी पात्रता सूची में शामिल किया जाता है. स्नातक/स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करने वाले कृषि इंजीनियरी संस्थानों की सूची नीचे दी गई है. पात्रतादाखिला प्रक्रियानिर्धारित तारीखें और प्रवेश परीक्षा संबंधी अन्य विस्तृत ब्यौरा जानने के लिए सम्बद्ध परीक्षा के आधिकारिक वेबसाइट पर लॉगऑन किया जा सकता है.कृषि इंजीनियरी परीक्षा की पद्धतिइस परीक्षा में बहु-विकल्प वाले वस्तुनिष्ठ प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं. परीक्षा के कुल अंक 160 होते हैं और विद्यार्थियों को उत्तर भरने के लिए 3 घंटे का समय दिया जाता है. प्रश्न निम्नांकित विषयों से संबंधित होते हैं:*गणित*रसायन विज्ञान*भौतिक विज्ञानकृषि इंजीनियरी में स्नातकोत्तर उपाधि संचालित करने वाले विश्वविद्यालयकृषि इंजीनियरी में विशेषज्ञता के 3 प्रमुख क्षेत्र हैंजिनमें एम.टेक और पीएच.डी स्तर की डिग्रियां प्रदान की जाती हैं. ये हैं - (I    ) कृषि मशीनरी और विद्युत इंजीनियरी; (II) प्रसंस्करण और खाद्य इंजीनियरीऔर (I   II) मृदा एवं जल इंजीनियरी. अन्य विषयों में नवीकरणीय ऊर्जा इंजीनियरीसिंचाई और जल निकासी इंजीनियरीकृषि संरचना और पर्यावरण नियंत्रण इंजीनियरीडेरी इंजीनियरी और जल-जीव पालन इंजीनियरी शामिल हैं.कृषि प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पीजीडीएमए)आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी (एनएएआरएम) ने मिल कर 2009 में कृषि प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा (पीजीडीएमए) पाठ्यक्रम शुरू किया था. पीजीडीएमए 2 साल का पूर्ण आवासीय पाठ्यक्रम हैजो अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) से मान्यता प्राप्त है. इसका लक्ष्य कृषि और खाद्य तथा अनुषंगी क्षेत्रों में प्रबंधन संबंधी व्यवसायों के लिए विद्यार्थियों को तैयार करना है.1. अनिवार्य योग्यताएं : पीजीडीएमए 4 वर्षीय स्नातक उपाधि पाठ्यक्रम हैजिसमें दाखिले के लिए कृषिकृषि-व्यापार प्रबंधन/वाणिज्यिक कृषिकृषि विपणन और सहकारिताकृषि इंजीनियरीकृषि सूचना प्रौद्योगिकीकृषि बायो-इन्फोर्मेटिक्सकृषिगत जैव प्रौद्योगिकीडेरी विज्ञान/प्रौद्योगिकीमत्स्य उद्योगखाद्य प्रौद्योगिकी/खाद्य प्रसंस्करण इंजीनियरीवानिकीबागवानीरेशम कीटपालनकृषि और सिंचाई इंजीनियरीहोम साइंसबी.एससी (सहकारिता और बैंकिंग प्रबंधन) और वेटरीनरी विज्ञान जैसे विषयों में  आईसीएआर/यूजीसी द्वारा मान्यता प्राप्त किसी कृषि विश्वविद्यालय या संस्थान से 4 वर्षीय स्नातक उपाधि प्राप्त करना आवश्यक है.2.उम्मीदवारों की संक्षिप्त सूची तैयार करना: सीएटी/सीएमएटी/एक्सएटी/एमएटी जैसी परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर चयन के अगले चरण यानी समूह वार्तालाप (जीडी) और व्यक्तिगत साक्षात्कार (पीआई) के लिए उम्मीदवारों की संक्षिप्त सूची तैयार की जाती है.3. अंतिम चयन: चयन प्रक्रिया में विभिन्न घटकों को दी जाने वाली वरीयता इस प्रकार है:सीएटी/सीएमएटी/एक्सएटी/40 प्रतिशतएमएटी में प्राप्तांक -समूह वार्तालाप -25 प्रतिशतवैयक्तिक साक्षात्कार -25 प्रतिशतशैक्षिक रिकॉर्ड  - 10 प्रतिशतनिष्कर्ष : कृषि इंजीनियरी को उन प्रमुख विषयों में से एक समझा गया हैजो देश में कृषि की उत्पादकता बढ़ानेसंसाधनों के संरक्षण और फसल परवर्ती हानियों में कमी लाने के अलावा कृषि उपज के मूल्य संवर्धन में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं. कृषि इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में समुचित प्रौद्योगिकी विकसित करने और किसानों को समुचित प्रशिक्षण देने की तत्काल आवश्यकता है. यह कार्य तभी संभव हो सकता हैजब विश्वविद्यालयों द्वारा तैयार किए गए स्नातक और स्नातकोत्तर व्यक्तियों को खेती के लिए प्रयोज्य अत्याधुनिक इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी की समुचित शिक्षा दी गई हो. स्नातकोत्तर स्तर पर ऐसा करना और भी महत्वपूर्ण हैजहां उन्हें न केवल अपने विषयों में अत्याधुनिक अनुसंधानों की जानकारी रखने की आवश्यकता हैबल्कि उनके विषयों में आधुनिक और अद्यतन तकनीकों का प्रशिक्षण देना भी अनिवार्य हैताकि वे अपने अपने क्षेत्रों में विकास और आधुनिकता में योगदान कर सकें. इसलिए पाठ्यक्रम की सामग्री और वितरण प्रणाली को नया रूप देने और संगठित करने की आवश्यकता हैताकि वे वैश्विक दृष्टि से प्रतिस्पर्धी कार्मिक पैदा कर सकें. इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (आईसीएआर/राज्य कृषि विश्वविद्यालय) में रोजग़ार के अवसर सिकुड़ते जाने को देेखते हुए ऐसे विद्यार्थी तैयार करने के लिए हमारी शिक्षा प्रणाली पर  अतिरिक्त दबाव हैजो निजी क्षेत्र की मांग पूरी कर सकें. कृषि इंजीनियरी और प्रौद्योगिकी में नए और पुनर्गठित स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम तैयार किए गए हैंजिनमें निजी क्षेत्र की मांग को ध्यान में रखा गया है. इसमें अन्य बातों के अलावा वाणिज्यिक पहलुओंआधुनिक अनुसंधान उपकरणों और उनके अनुप्रयोगोंअपेक्षित पूरक कौशलों  का दोहन करने और विद्यार्थियों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा तथा रोजग़ार सक्षमता बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है.(लेखक आईएआरआईपूसानई दिल्ली के जल प्रौद्योगिकी प्रभाग में सेवारत हैं).

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